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ग़ज़ल
बनाया है जिन्हें मैं ने मोहब्बत के गुलाबों से
तर-ओ-ताज़ा वो गुल-दस्ते तुम्हारे नाम करती हूँ
समीना गुल
ग़ज़ल
वक़्त के रंगीं गुल-दस्ते को याद आएगा ठंडा हाथ
जब बिखरेंगे वो गेसू तो मर जाएगा ठंडा हाथ
साग़र सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
दस्त-ए-गुल याद नहीं मौज-ए-सबा याद नहीं
अब मुझे कुछ रुख़-ए-जानाँ के सिवा याद नहीं
समी सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
काट डाला दस्त-ए-शाख़-ए-गुल को पा-ए-सर्व को
बाग़बाँ ने देख कर उस गुल-बदन के हाथ पाँव
वज़ीर अली सबा लखनवी
ग़ज़ल
'आदिल' इस रहदारी से वाबस्ता कुछ गुल-दस्ते थे
रुक रुक कर बढ़ने वालों की पस्पाई से ख़त्म हुए
ज़ुल्फ़िक़ार आदिल
ग़ज़ल
ख़ार ख़ुशबू दे रहे हैं आज गुलशन के लिए
फूल गुल-दस्ते की सूरत में हैं आतिश-दान पर
अबुल फ़ितरत मीर ज़ैदी
ग़ज़ल
ये गुल-दस्ते के बदले में जहाँ मिलते थे हम अक्सर
वहाँ के पेड़ की पत्ती उठा लाते तो रुक जाते
ओम भुतकर मग़्लूब
ग़ज़ल
वक़्त मिले तो गुल-दस्ते का हाथ पकड़ कर आ जाना
वर्ना कहना काम बहुत है आने में दुश्वारी है
सिदरा सहर इमरान
ग़ज़ल
कभी रुत्बा दिया यारों को गुल-दस्ते के फूलों का
सजा कर फिर नए फूलों को तू रिश्ते डुबोता है