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ग़ज़ल
सुनता है कौन आशिक़ों की आह-ओ-ज़ारियाँ
गोश-ए-चमन को शोर-ए-अनादिल से क्या ग़रज़
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
गोश-ए-बेहोश वो क्या जिस ने कि हंगाम-ए-नवा
कोई नाला ही लब-ए-नय से निकलता न सुना
शानुल हक़ हक़्क़ी
ग़ज़ल
लुत्फ़ आए जो शब-ए-वस्ल मोअज़्ज़िन सो जाए
क्यूँकि वो गोश-बर-आवाज़ नज़र आते हैं
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
जो भी मिला उसी का दिल हल्क़ा-ब-गोश-ए-यार था
उस ने तो सारे शहर को कर के ग़ुलाम रख दिया
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
गोश-ए-दिल-ओ-जाँ में हैं अमानत तिरी बातें
मोती कभी निकलेंगे न इस कान से बाहर
आशिक़ हुसैन बज़्म आफंदी
ग़ज़ल
उन का जल्वा कार-फ़रमा है किसी के हुस्न में
इश्क़ फिर हल्क़ा-ब-गोश-ए-हुस्न-ए-इंसानी है आज
प्रेम लाल शिफ़ा देहलवी
ग़ज़ल
गोश-ए-गुल-बहार में किस ने कहा है हर्फ़-ए-शौक़
कौन है मेरा तर्जुमाँ किस को मिली मिरी ज़बाँ
सलीम अहमद
ग़ज़ल
आह ज़ारी पर किसी की वो न करता था ख़याल
गोश-ए-ज़द-आवाज़ उस दम ढोलक-ओ-मृदंग था