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ग़ज़ल
हमारे क़त्ल पर चश्म-ए-फ़लक में ख़ून उतरेगा
फ़ज़ाओं में सजेगा सुर्ख़ से तूफ़ान का मंज़र
ताहिर अदीम
ग़ज़ल
ख़ाक होने से बना चश्म-ए-फ़लक का सुर्मा
ख़ाकसारी जो नहीं ख़ाक भी इंसाँ में नहीं
चंद्रभान कैफ़ी देहल्वी
ग़ज़ल
जो मेरी चश्म-ए-फ़लक पर कभी ठहर न सका
सहाब था कि हसीं एक ख़्वाब था क्या था
मोहम्मद सिद्दीक़ नक़वी
ग़ज़ल
तिरे इंसाफ़ पर हैरान है चश्म-ए-फ़लक मुंसिफ़
कि तू जब भी सुनाता है सज़ाएँ रक़्स करती हैं
अरशद नदीम अरशद
ग़ज़ल
बेकसी चश्म-ए-फ़लक ने दम-ब-दम देखी मिरी
दुनिया में आजिज़ कहाँ मुझ ख़ाना-वीराँ की तरह
रऊफ़ यासीन जलाली
ग़ज़ल
ऐ 'फ़लक' मैं जो गया सू-ए-फ़लक शोर हुआ
महफ़िल-ए-दहर से इक हस्ती-ए-मुम्ताज़ गई
हीरा लाल फ़लक देहलवी
ग़ज़ल
ज़माना देखता है हंस के चश्म-ए-ख़ूँ-फ़िशाँ मेरी
मगर मैं ख़ुश हूँ उन की दास्ताँ है और ज़बाँ मेरी
हीरा लाल फ़लक देहलवी
ग़ज़ल
सुना है चश्म-ए-मुअर्रिख़ में रौशनी कम है
सुनहरी हर्फ़ भी कुछ अपनी दास्तान में रख
हीरा लाल फ़लक देहलवी
ग़ज़ल
दिल की चोरी में जो चश्म-ए-सुर्मा-सा पकड़ी गई
वो था चीन-ए-ज़ुल्फ़ में ये बे-ख़ता पकड़ी गई