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ग़ज़ल
असर-ए-आह-ए-दिल-ए-ज़ार की अफ़्वाहें हैं
या'नी मुझ पर करम यार की अफ़्वाहें हैं
मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता
ग़ज़ल
ये है तुर्फ़ा-तमाशा कर्बला-ए-अस्र-ए-हाज़िर का
घरों में क़ातिलों के अब अज़ा-दारी भी होती है
मलिकज़ादा मंज़ूर अहमद
ग़ज़ल
कुछ अपनों का करम है कुछ निगाह-ए-अस्र-ए-हाज़िर है
हयात इक हसरतों की दास्ताँ मालूम होती है
सआदत आबिदी
ग़ज़ल
साज़-ए-अस्र-ए-हाज़िर पर नग़्मा-ए-कुहन यारो
होश में अब आ जाओ मेरे हम-वतन यारो
अब्दुल मजीद दर्द भोपाली
ग़ज़ल
मुनहसिर है मर्ग पर बीमार-ए-उलफ़त की शिफ़ा
चारा-गर तू क्यों 'अबस इस स'ई-ए-ला-हासिल में है