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ग़ज़ल
फ़ना बुलंदशहरी
ग़ज़ल
दिन भर धूप की तरह से हम छाए रहते हैं दुनिया पर
रात हुई तो सिमट के आ जाते हैं दिल की गुफाओं में
बशीर बद्र
ग़ज़ल
ये किस के हुस्न के रंगीन जल्वे छाए जाते हैं
शफ़क़ की सुर्ख़ियाँ बन कर तजल्ली-ए-सहर हो कर
असरार-उल-हक़ मजाज़
ग़ज़ल
हम ने सुना था सहन-ए-चमन में कैफ़ के बादल छाए हैं
हम भी गए थे जी बहलाने अश्क बहा कर आए हैं
हबीब जालिब
ग़ज़ल
है यही इक कारोबार-ए-नग़्मा-ओ-मस्ती कि हम
या ज़मीं पर या सर-ए-अफ़्लाक हैं छाए हुए
मजरूह सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
आँखों पे यूँ छाए हो तुम हर जा नज़र आए हो तुम
कैसा जुनूँ मुझ को हुआ हज़रत निज़ामुद्दीन-जी
शहरयार
ग़ज़ल
रुख़-ए-ज़ेबा पे लहरें लेती हैं कुछ इस तरह ज़ुल्फ़ें
कि जैसे चाँद पर छाए सहाब आहिस्ता आहिस्ता