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ग़ज़ल
रूप को धोका समझो नज़र का या फिर माया-जाल कहो
प्रीत को दिल का रोग समझ लो या जी का जंजाल कहो
सय्यद शकील दस्नवी
ग़ज़ल
वक़्त के बे-ढब रस्तों पर और उल्टी सीधी चाल में ख़ुश
देखो कैसे रहते हैं हम दुनिया के जंजाल में ख़ुश
अज़ीज़ नबील
ग़ज़ल
विसाल-ओ-हिज्र के जंजाल में पड़ा हुआ हूँ
में अर्श-ए-रौ कहाँ पाताल में पड़ा हुआ हूँ
हाशिम रज़ा जलालपुरी
ग़ज़ल
जी का जंजाल है 'इश्क़ मियाँ क़िस्सा ये तमाम करो 'वाली'
बड़ी रात गई अब सो जाओ कुछ देर आराम करो 'वाली'
वाली आसी
ग़ज़ल
हमारी रूह तो फिरती है माशूक़ों की गलियों में
'नज़ीर' अब हम तो मर कर भी न इस जंजाल से छूटे
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
बंद रूमी है समोर उस के प काम आँ-रोज़ों
देखने में कभी आई न थी इस जाल की खाल
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
किस का भेद कहाँ की क़िस्मत पगले किस जंजाल में है
बाज़ी है इक सादा-काग़ज़ सारा कर्तब चाल में है