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ग़ज़ल
जब मैं था शहर ज़ात का था मिरा हर-नफ़स अज़ाब
फिर मैं वहाँ का था जहाँ हालत-ए-ज़ात भी गई
जौन एलिया
ग़ज़ल
ऐ सख़ियो ऐ ख़ुश-नज़रो यक गूना करम ख़ैरात करो
नारा-ज़नाँ कुछ लोग फिरें हैं सुब्ह से शहर-ए-निगार के बीच
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
यहाँ घाव है यहाँ वार है ये सियासतों का दयार है
यहाँ कोई तेरा जना नहीं यहाँ कोई मेरा सगा नहीं
शकील आज़मी
ग़ज़ल
हुई इस दौर में मंसूब मुझ से बादा-आशामी
फिर आया वो ज़माना जो जहाँ में जाम-ए-जम निकले
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
क़ाफ़िले में हैं बहुत राहरवाँ भी तो शरीक
रहबराँ ही तो नहीं राह-ज़नाँ ही तो नहीं
फ़ज़्ल अहमद करीम फ़ज़ली
ग़ज़ल
तुम ने बारूद की थैलियों में जना था नई नस्ल को
आज कहते हो ये अम्न-अंगेज़ थी इस को क्या हो गया
मुनीर जाफ़री
ग़ज़ल
जज़्ब तेरा ही अगर खींचे तो पहुँचें वर्ना
तुझ को सुनते हैं परे वाँ से जहाँ जाते हैं
मीर मोहम्मदी बेदार
ग़ज़ल
तू वफ़ादार है ऐ यार-ए-जना-कार कि तू
मैं वफ़ादार हूँ ऐ यार-ए-हिबा-कार कि तू