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ग़ज़ल
ये जमुना की हसीं अमवाज क्यूँ अर्गन बजाती हैं
मुझे गाना नहीं आता मुझे गाना नहीं आता
अख़्तर अंसारी
ग़ज़ल
जमुना में कल नहा कर जब उस ने बाल बाँधे
हम ने भी अपने दिल में क्या क्या ख़याल बाँधे
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
हुई इस दौर में मंसूब मुझ से बादा-आशामी
फिर आया वो ज़माना जो जहाँ में जाम-ए-जम निकले
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
ख़ूँ-गिरफ़्ता हो तो ख़ंजर का बदन दुखता है
पंजा-ए-ख़ैर में ही शर का बदन दुखता है
जमुना प्रसाद राही
ग़ज़ल
'बरहमन' वास्ते अश्नान के फिरता है बगियाँ सीं
न गंगा है न जमुना है न नद्दी है न नाला है
पंडित चंद्र भान बरहमन
ग़ज़ल
वो ऐ 'सीमाब' क्यूँ सरगश्ता-ए-तसनीम-ओ-जन्नत हो
मयस्सर जिस को सैर-ए-ताज है जमुना का साहिल है
सीमाब अकबराबादी
ग़ज़ल
गाँव से गुज़रेगा और मिट्टी के घर ले जाएगा
एक दिन दरिया सभी दीवार ओ दर ले जाएगा
जमुना प्रसाद राही
ग़ज़ल
वो शख़्स जिस के प्यार में आलम दिवाना था
रुख़्सत हुआ तो याद से ग़ाफ़िल ज़माना था
मोहम्मद जावेद इशाअती
ग़ज़ल
जंग में परवर-दिगार-ए-शब का क्या क़िस्सा हुआ
लश्कर-ए-शब सुब्ह की सरहद पे क्यूँ पसपा हुआ