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ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
मुज़्तरिब हूँ अज़्मत-ए-रफ़्ता को पाने के लिए
जिस ने आईन-ए-जहाँ-दारी को हैराँ कर दिया
सय्यद ज़हीर अहमद ज़ैदी
ग़ज़ल
अभी अहल-ए-हवस दुनिया में क्या क्या गुल खिलाएँगे
अभी अहल-ए-जुनूँ ख़्वाब-ए-जहाँ-दारी में रहते हैं
महताब हैदर नक़वी
ग़ज़ल
मिरे क़हक़हों की ज़द पर कभी गर्दिशें जहाँ की
मिरे आँसुओं की रौ में कभी तल्ख़ी-ए-ज़माना
मुईन अहसन जज़्बी
ग़ज़ल
'बासित' ग़म-ए-ज़माना से ग़ाफ़िल नहीं था मैं
सारे जहाँ का ग़म भी तो मेरे ग़मों में था
बासित अज़ी
ग़ज़ल
मुझ को अर्बाब-ए-ज़माना से कोई लाग न थी
मैं तो मरदूद-ए-जहाँ बस तिरी शफ़क़त में हुआ
शहाबुद्दीन साक़िब
ग़ज़ल
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
वो जो वाक़िफ़ नहीं तहज़ीब-ए-ज़बाँ-दानी से
अपनी दस्तार में अब वो भी गुहर बाँधते हैं
ख़्वाजा रब्बानी
ग़ज़ल
वो जो वाक़िफ़ नहीं तहज़ीब-ए-ज़बाँ-दानी से
अपनी दस्तार में अब वो भी गुहर बाँधते हैं