aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "ज़ंजीर-ज़नी"
ख़ामोशी है अब मेरी समाअ'त का तक़ाज़ापायल की खनक कान पे ज़ंजीर-ज़नी है
ख़ूँ बहाता हुआ ज़ंजीर-ज़नी करता हुआकोई पागल है जो बेहाल हुआ है मुझ में
धड़कनें रक़्स में ज़ंजीर-ज़नी करती हैंअब कि जज़्बात में शोरीदा-सरी लगती है
मेरे सीने से ज़रा कान लगा कर देखोसाँस चलती है कि ज़ंजीर-ज़नी होती है
दिल के बाज़ार में ज़ंजीर-ज़नी होनी नहींआँख भी आँख रहे झील नहीं करनी मुझे
क़िस्मत अपनी है कि हम नौहागरी करते हुएकरें ज़ंजीर-ज़नी दिल के अज़ा-ख़ाने में
ज़ंजीर-ज़नी है तो कहीं मर्सिया-ख़्वानीये मातमी दस्ता है जनाज़ा है कि दिल है
ज़ंजीर-ज़नी होती न हर साँस में मेरीदिल दर्द का ऐसे जो अलम-दार न होता
आयात को नेज़ों पे चढ़ा कर तो न पूछोज़ंजीर-ज़नी करते हुए शहर में क्या था
फिर पुश्त पे हर ख़्वाब की ज़ंजीर-ज़नी होजब शाम-ए-ग़रीबाँ मिरी पोशाक पे रक्खो
बे-नियाज़-ए-ग़म-ए-पैमान-ए-वफ़ा हो जानातुम भी औरों की तरह मुझ से जुदा हो जाना
दम ले ऐ कोहकन अब तेशा-ज़नी ख़ूब नहींजान-ए-शीरीं को न खो कोह-कनी ख़ूब नहीं
ये तो ज़िंदाँ के निगहबाँ ही बताएँगे तुम्हेंकिन असीरों ने लगाई आग ज़ंजीरें जलीं
ज़मीं प्यासी 'ज़मीर' इंसान भी प्यासे नहीं रहतेअगर दरिया मैं बन जाता अगर मैं झील हो जाता
ज़ेहन की चटयल ज़मीं से आँच आती है 'ज़हीर'अब यहाँ एहसास के रंगीं शजर मिलते नहीं
'ज़हीर' तेरी जबीं क्यूँ अरक़ अरक़ है अभीअभी तो राह में बाक़ी है दोपहर की धूप
जीने में आसानी रखइक तस्वीर पुरानी रख
बंदूक़ में गोली भी नहीं सर में हदफ़ भीऔर बढ़ता चला जाता हूँ जंगल की तरफ़ भी
ज़मीं का रंग वही आसमाँ का रंग वहीवही सबाहत-ए-गुल है बिना-ए-संग वही
कितना पुर-सोज़ है ये नाला-ए-शब-गीर मिरायास से तकते हैं मुँह हल्क़ा-ए-ज़ंजीर मिरा
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