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ग़ज़ल
कभी जो आवारा-ए-जुनूँ थे वो बस्तियों में फिर आ बसेंगे
बरहना-पाई वही रहेगी मगर नया ख़ार-ज़ार होगा
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
ज़ेर-ए-ज़मीं से आता है जो गुल सो ज़र-ब-कफ़
क़ारूँ ने रास्ते में लुटाया ख़ज़ाना क्या
हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
ज़र-ओ-माल-ओ-जवाहर ले भी और ठुकरा भी सकता हूँ
कोई दिल पेश करता हो तो ठुकराना नहीं आता
अदीम हाशमी
ग़ज़ल
पढ़ता नहीं ख़त ग़ैर मिरा वाँ किसी 'उनवाँ
जब तक कि वो मज़मूँ में तसर्रुफ़ नहीं करता