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ग़ज़ल
उस को इनआम-ए-ख़ुदी और इस पर लुत्फ़-ए-बे-ख़ुदी
वो करम करते हैं ज़र्फ़-ए-अहल-ए-इरफ़ाँ देख कर
फ़ानी बदायुनी
ग़ज़ल
जरस है कारवान-ए-अहल-ए-आलम में फ़ुग़ाँ मेरी
जगा देती है दुनिया को सदा-ए-अल-अमाँ मेरी
सीमाब अकबराबादी
ग़ज़ल
सज्दा-गाह-ए-अहल-ए-दिल बा'द-ए-फ़ना हो जाइए
सफ़्हा-ए-हस्ती पे इक नक़्श-ए-वफ़ा हो जाइए
हिरमाँ ख़ैराबादी
ग़ज़ल
अज़ल से गो मज़ाक़-ए-अहल-ए-दुनिया और ही कुछ है
हक़ीक़त में मगर जीने का मंशा और ही कुछ है
हक़्क़ी हज़ीं
ग़ज़ल
निकल कर हल्क़ा-ए-अहल-ए-असर से भाग जाऊँ मैं
कई दिन से ये ख़्वाहिश है कि घर से भाग जाऊँ मैं