आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "ज़हर-ए-सुख़न"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "ज़हर-ए-सुख़न"
ग़ज़ल
मिरी सरिश्त-ए-'सुख़न' में हैं कुछ नए उस्लूब
नई ग़ज़ल ने मुझे भी ख़ुश-आमदीद कहा
अब्दुल वहाब सुख़न
ग़ज़ल
वो जो हैं लज़्ज़त-ए-तफ़्हीम-ए-सुख़न से वाक़िफ़
शे'र सुनते हैं वही लोग मुकर्रर मुझ से
अब्दुल वहाब सुख़न
ग़ज़ल
'फ़ैज़' की फ़िक्र की बोतल में है जो ज़हर-ए-सुख़न
देखना है की अभी कितने बरस पीते हैं
फ़ैज़ ख़लीलाबादी
ग़ज़ल
उफ़ुक़ का चेहरा 'सुख़न' इस कदर उदास है क्यूँ
शफ़क़ के रंग में ये सुर्ख़ी-ए-लहू कैसी
अब्दुल वहाब सुख़न
ग़ज़ल
किसी के नक़्श-ए-क़दम की थी जुस्तुजू वर्ना
मैं इस तरह तो 'सुख़न' दर-ब-दर नहीं होता
अब्दुल वहाब सुख़न
ग़ज़ल
हुसूल-ए-अम्न-ओ-मुहब्बत की चाशनी के लिए
मिज़ाज-ए-तल्ख़ी-ए-दौराँ 'सुख़न' गवारा कर
अब्दुल वहाब सुख़न
ग़ज़ल
अभी है दूर हर इक महफ़िल-ए-तरब से 'सुख़न'
दिल-ओ-नज़र में अभी इज़्तिराब इतने हैं
अब्दुल वहाब सुख़न
ग़ज़ल
कर चुका है जो हर इक दौर में तिरयाक़ का काम
मेरे साग़र में वही ज़हर-ए-सुख़न आज भी है
महशर इनायती
ग़ज़ल
नरेश एम. ए
ग़ज़ल
तमाँचा बाग़ के रुख़्सार पर लगा किस का
कि ताएरों का भी रंग-ए-सुख़न शिकस्ता है
औलाद-ए-रसूल क़ुद्सी
ग़ज़ल
'क़ुदसी' तो अकेला नहीं मैदान-ए-सुख़न में
हर कूचा-ओ-बाज़ार में फ़न-कार बहुत हैं