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ग़ज़ल
शीशा मय-ए-गुलगूँ का है या रंग-ए-शफ़क़ से
रंग अपने दिखाता है मुझे चर्ख़-ए-ज़ुजाजी
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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शीशा मय-ए-गुलगूँ का है या रंग-ए-शफ़क़ से
रंग अपने दिखाता है मुझे चर्ख़-ए-ज़ुजाजी