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ग़ज़ल
कोई साज़िश रचो ज़ेर-ओ-ज़बर की बात मत सोचो
रिया-कारों में तुम अपने हुनर की बात मत सोचो
हामिद इक़बाल सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
वक़्त के ज़ेर-ओ-ज़बर में नहीं रक्खा जाता
मुस्तक़िल ज़ेहन को डर में नहीं रक्खा जाता
दीपक प्रजापति ख़ालिस
ग़ज़ल
चुप रहूँ मैं तो मिरे ज़ेर-ओ-ज़बर बोलते हैं
टूटी दीवार के सब रख़्ना-ओ-दर बोलते हैं
ग़ुलाम मुस्तफ़ा फ़राज़
ग़ज़ल
हर फ़सील-ए-राह को ज़ेर-ओ-ज़बर करते हुए
मैं यहाँ पहुँचा हूँ क़रनों का सफ़र करते हुए
सय्यद मुजीबुल हसन
ग़ज़ल
दुनिया-ए-ग़म को ज़ेर-ओ-ज़बर कर सके तो कर
रहमत की मुझ पे एक नज़र कर सके तो कर