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ग़ज़ल
सहारा इश्क़-ए-ज़ोर-आवर ने ख़ुद ही दे दिया वर्ना
कहाँ हम और कहाँ ताक़त ये कोह-ए-ग़म उठाने की
अहमद महफ़ूज़
ग़ज़ल
लाठी पानी में डालों तो वापस आती है पानी पर
दरिया ज़ोर-आवर है कितना मेरा सरमाया है कितना
ख़लील रामपुरी
ग़ज़ल
न कर जबीन-ए-ख़ियाम ज़ख़्मी न सह अज़ाबों की धूप सर पे
न कर हवाओं की परवरिश यूँ कि ज़ोर-आवर तनाब टूटे
असद रिज़वी
ग़ज़ल
जो आवे मुँह पे तिरे माहताब है क्या चीज़
ग़रज़ ये माह तो क्या आफ़्ताब है क्या चीज़
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
मुझ ऐसे वामांदा-ए-जाँ को बिस्तर-विस्तर क्या
पल दो पल को मूँद लूँ आँखें वर्ना घर-वर क्या
ज़ेब ग़ौरी
ग़ज़ल
पकड़ मिज़्गाँ के पंजे सूँ मरोड़ा यूँ मिरे दिल को
तिरी ज़ोर-आवरी में आज रुस्तम हैं बली अँखियाँ