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ग़ज़ल
ख़्वाब में भी हम को है ज़ौक़-ए-तमाशा-ए-जमाल
दीदा-ए-बेदार दिल है चश्म-ए-ग़ाफ़िल से अलग
मोहम्मद ज़करिय्या ख़ान
ग़ज़ल
फ़ज़ा-ए-ज़ौक़-ए-तमाशा है सर-बसर महदूद
वसीअ' दायरा-ए-हुस्न और नज़र महदूद
सय्यद वाजिद अली फ़र्रुख़ बनारसी
ग़ज़ल
फिर भी आँखें रहीं महरूम-ए-तमाशा-ए-जमाल
उन की तस्वीर को शीशे में उतारा भी गया
अबु मोहम्मद वासिल बहराईची
ग़ज़ल
चश्म-ए-मुश्ताक़ तमाशा-ए-करम चाहे है
दिल वो बर्बाद-ए-करम है कि सितम चाहे है