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ग़ज़ल
तिरे ग़म को जाँ की तलाश थी तिरे जाँ-निसार चले गए
तिरी रह में करते थे सर तलब सर-ए-रहगुज़ार चले गए
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
उसूल-ए-ज़िंदगी जाँ-दादा-ए-क़ातिल समझते हैं
न सर को सर समझते हैं न दिल को दिल समझते हैं
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
ग़ज़ल
हवा का दामन लहू लहू था फ़ज़ा के अंदर घुटन घुटन थी
गुलाल मिट्टी में रेत उड़ती हुई सर-ए-रहगुज़ार देखी