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ग़ज़ल
इब्न-ए-चमन है तेरी वफ़ाओं पे जाँ-निसार
अपना बना के तू ने मुकम्मल क्या मुझे
अशहद बिलाल इब्न-ए-चमन
ग़ज़ल
कहीं मुँह फेरता है जाँ-निसार-ए-इश्क़ मरने से
फ़िदा वो जान कर ले तुझ पे गर सौ बार हो पैदा
जमीला ख़ुदा बख़्श
ग़ज़ल
ज़िंदगी ये तो नहीं तुझ को सँवारा ही न हो
कुछ न कुछ हम ने तिरा क़र्ज़ उतारा ही न हो
जाँ निसार अख़्तर
ग़ज़ल
ऐ दर्द-ए-इश्क़ तुझ से मुकरने लगा हूँ मैं
मुझ को संभाल हद से गुज़रने लगा हूँ मैं
जाँ निसार अख़्तर
ग़ज़ल
तुम्हारे जश्न को जश्न-ए-फ़रोज़ाँ हम नहीं कहते
लहू की गर्म बूँदों को चराग़ाँ हम नहीं कहते