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ग़ज़ल
अक्सर ख़्वाब में दिखने वाले एक पुराने मंज़र में
इक जाना पहचाना चेहरा दूर खड़ा मुस्काता है
ज़ुल्फ़िक़ार ज़की
ग़ज़ल
अजनबी बस्ती के लोगों से ज़रा नज़रें मिला
मिल ही जाएगा यहाँ भी जाना-पहचाना कोई
इमराना मुशताक़ मानी
ग़ज़ल
धुंदली धुंदली यादों में इक रौशन रौशन चेहरा है
जाना-पहचाना लगता है शायद कोई अपना है
मरियम फ़ातिमा
ग़ज़ल
आगाही माकूस सफ़र है दानिश-गाह के रस्ते का
जिस का हर जाना-पहचाना मंज़र है अन-जाना भी