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ग़ज़ल
बुझ गए सारे चराग़-ए-जिस्म-ओ-जाँ तब दिल जला
ख़ल्क़ की ख़ातिर हमारा मुर्शिद-ए-कामिल जला
फ़रहत एहसास
ग़ज़ल
दरमियान-ए-जिस्म-ओ-जाँ है इक अजब सूरत की आड़
मुझ को दिल की दिल को है मेरी अनानियत की आड़
साहिर देहल्वी
ग़ज़ल
ख़त्म कल तक इर्तिबात-ए-जिस्म-ओ-जाँ हो जाएगा
हर नफ़स अफ़्साना-ए-उम्र-ए-रवाँ हो जाएगा
अब्दुल अज़ीज़ फ़ितरत
ग़ज़ल
मिरा बिखरना पस-ए-जिस्म-ओ-जाँ नहीं देखा
किसी ने जलते दिए का धुआँ नहीं देखा
सैफ़ुर्रहमान अब्बाद ग़ाज़ीपूरी
ग़ज़ल
कभी अहल-ए-मुहब्बत यूँ न ख़ौफ़-ए-जिस्म-ओ-जाँ करते
अगर शैख़-ओ-बरहमन जश्न-ए-नाक़ूस-ओ-अज़ाँ करते
आजिज़ मातवी
ग़ज़ल
हिजाब-ए-जिस्म-ओ-जाँ में हुस्न-ए-पिन्हाँ देख लेते हैं
नज़र वाले तुम्हें ता-हद-ए-इम्काँ देख लेते हैं
अफ़क़र मोहानी
ग़ज़ल
राहत-ए-कौनैन वस्ल-ए-जिस्म-ओ-जाँ समझा था मैं
ज़िंदगी को सूद मरने को ज़ियाँ समझा था में
जगदीश सहाय सक्सेना
ग़ज़ल
राहत-ए-कौनैन वस्ल-ए-जिस्म-ओ-जाँ समझा था मैं
ज़िंदगी को सूद मरने को ज़ियाँ समझा था मैं