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ग़ज़ल
सर-ए-दश्त ही रहा तिश्ना-लब जिसे ज़िंदगी की तलाश थी
जिसे ज़िंदगी की तलाश थी लब-ए-जूएबार कहाँ रहा
अदा जाफ़री
ग़ज़ल
जो अपने तन कूँ मिस्ल-ए-जूएबार अव्वल किया पानी
हुआ उस सर्व-क़द सूँ हम-कनार आहिस्ता-आहिस्ता
वली दकनी
ग़ज़ल
सुम्बुल है जियूँ कि जल्वा-नुमा जूएबार पर
आँखों में मेरी अक्स दो-ज़ुल्फ़-ए-सियाह का
सिराज औरंगाबादी
ग़ज़ल
तलब है गर्मी-ए-पहलू-ए-दोस्त की मुझ को
हवा-ए-सर्द न दे मुझ को जूएबार न दे
हैदर हुसैन फ़िज़ा लखनवी
ग़ज़ल
याँ लग बहे है ख़ून मिरे अश्क-ए-चश्म से
बहते हैं अब के साल में सब जूएबार सुर्ख़