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ग़ज़ल
उस बस्ती के लोगों से जब बातें कीं तो ये जाना
दुनिया भर को जोड़ने वाले अंदर अंदर बिखरे हैं
राहत इंदौरी
ग़ज़ल
राब्ते जोड़ने निकला था मैं इंसाँ के 'ख़याल'
किसी इंसाँ ने मुझे प्यार से देखा भी नहीं
फ़ैज़ुल हसन ख़्याल
ग़ज़ल
दिल किसी का तोड़ कर उस ने बिखेरी ज़िंदगी अब
जोड़ने की ज़िद में वो ख़ुद ही बिखरता जा रहा है
फ़िरोज़ अहमद
ग़ज़ल
ज़रा सी बात पर ख़फ़ा हुआ था और क्या कहूँ
सो हाथ जोड़ने पे भी वो मान तक नहीं रहा