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ग़ज़ल
मरकज़-ए-जोश-ए-जुनूँ 'अक़्ल की तनवीर भी था
वो मिरा ख़्वाब मिरे ख़्वाब की ता'बीर भी था
काैसर परवीन काैसर
ग़ज़ल
मैं अगर कर दूँ रक़म जोश-ए-जुनूँ काग़ज़ पर
लफ़्ज़ बन बन के ढले दिल का ये ख़ूँ काग़ज़ पर
नितिन नायाब
ग़ज़ल
जोश-ए-जुनूँ भी गर्दिश-ए-दौराँ से कम न था
दिल था तो दश्त-ए-ग़म भी गुलिस्ताँ से कम न था
अर्श सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
जोश-ए-जुनूँ में रात दिन सब से रहा अलग अलग
मैं हूँ जुदा अलग अलग लोग जुदा अलग अलग
नवाब सद्र महल सद्र
ग़ज़ल
जोश-ए-जुनूँ में निकले हैं जब अपने घर से हम
मिल मिल के ख़ूब रोए हैं दीवार-ओ-दर से हम