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ग़ज़ल
आँखें आगे बढ़ना चाहें पीछे रह जाती है नज़र
पलकों की झालर पे नुमायाँ काम सितारा-साज़ों का
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
ग़ज़ल
जगत सबहहा अमत बरहमुख अटक कहसवा ममन करन खा
दिवानी केनी तुमन सुरीजन न सुध की गर पर न बुध की झाला
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
नथुनी झुमके चूड़ी करधन बिछुए झाँझर हो जाते हैं
इक लड़की के सारे सुख-दुख उस के ज़ेवर हो जाते हैं
कनुप्रिया
ग़ज़ल
इक हसीना की सियह-ज़ुल्फ़ों पे झाला यूँ लगे
नाग काला छग के जैसे पी गया है बर्फ़ बर्फ़
मसूद हस्सास
ग़ज़ल
अख़्तर अंसारी
ग़ज़ल
हुनर अब सीख लो 'झाला' कहीं से ग़म-निगारी का
यहाँ सब दिल जले ही हैं तुम्हें फ़नकार कह देंगे