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ग़ज़ल
रिसालत की बिना गर झूट पर रक्खी गई होती
रसूलों को भी तो दुनिया ने झुठलाया नहीं होता
क़ैसर सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
जिस लहजे को भी झुठलाया हाथ में उस के ख़ाक लगी
जिस अबरू तक हाथ बढ़ाया हम ने उस को तीर किया
मुक़द्दस मालिक
ग़ज़ल
हक़ीक़त को अजब अंदाज़ से झुठलाया जाता है
ज़माने को ख़ुदा के नाम पर बहकाया जाता है
ओम प्रकाश लाग़र
ग़ज़ल
दबाईं धड़कनें आँखों को झुठलाया गया बरसों
बड़ी मुश्किल से वो इंकार से इक़रार तक पहुँचे
मुश्ताक़ नक़वी
ग़ज़ल
उस से कोई बात न कीजे बस उस की सुनते रहिए
जिस ने आँखें मूँद के जलते सूरज को झुठलाया है