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ग़ज़ल
शहर-ए-वफ़ा में जा निकले थे हम भी नूर से मिलने को
वो दीवाना इक परछाईं के हमराह टहलता था
नूर बिजनौरी
ग़ज़ल
क़र्या-ए-जाँ से हो कर गुज़रता था जो रास्ता या-अख़ी
एक साया बहुत देर उस पर टहलता रहा या-अख़ी