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ग़ज़ल
फिर तैर के मेरे अश्कों में गुल-पोश ज़माने लौट चले
फिर छेड़ के दिल में टीसों के संगीत गई रुत बीत गई
मजीद अमजद
ग़ज़ल
मोहब्बत को न रक्खो दिल के नाज़ुक आबगीनों में
ये ऐसा आब-ए-ज़म-ज़म है जिसे रखते हैं टीनों में
बुलबुल काश्मीरी
ग़ज़ल
बहुत बिगड़ा हुआ है दोस्तो घर का निज़ाम अपना
ये बस ऊपर ही ऊपर देख लो सब टीम टाम अपना
हमीद दिलकश खंड्वी
ग़ज़ल
है घर में टीम क्रिकेट की ज़रा तू शर्म कर ज़ालिम
गिरानी के ज़माने में ये लीमू कैरियाँ कब तक