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ग़ज़ल
पौ फटते ही ट्रेन की सीटी जब कानों में गूँजती है
सर्वत तेरी याद मिरे दिल के ख़ानों में गूँजती है
आसिमा ताहिर
ग़ज़ल
इक जुदाई लफ़्ज़ गुज़रा उस से हो कर ट्रेन जैसे
और कोई ट्रेन की इन पटरियों में आ गया है
अंकित मौर्या
ग़ज़ल
ज़ीस्त की ट्रेन में अपने अपने फ़ोन उठाए गुम-सुम से
जाने पहचाने रस्तों पर लोग सभी अनजाने हैं
सीमा नक़वी
ग़ज़ल
ठहर ठहर कर कौंद रही थी बिजली बाहर जंगल में
ट्रेन रुकी तो सरपट हो गया घोड़ा वक़्त की ताज़िश का
बद्र-ए-आलम ख़लिश
ग़ज़ल
हमारे दिल के जंक्शन पर मोहब्बत नाम है जिस का
कभी ग़लती से भी उस ट्रेन का रुकना नहीं होता