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ग़ज़ल
सबा अकबराबादी
ग़ज़ल
लोग हर मोड़ पे रुक रुक के सँभलते क्यूँ हैं
इतना डरते हैं तो फिर घर से निकलते क्यूँ हैं
राहत इंदौरी
ग़ज़ल
ज़माँ मकाँ थे मिरे सामने बिखरते हुए
मैं ढेर हो गया तूल-ए-सफ़र से डरते हुए
राजेन्द्र मनचंदा बानी
ग़ज़ल
बख़्शी हैं हम को इश्क़ ने वो जुरअतें 'मजाज़'
डरते नहीं सियासत-ए-अहल-ए-जहाँ से हम
असरार-उल-हक़ मजाज़
ग़ज़ल
इश्क़ है किस को याद कि हम तो डरते ही रहते हैं सदा
हुस्न वो जैसा भी है उस की दहशत बहुत ज़्यादा है
ज़फ़र इक़बाल
ग़ज़ल
शुरू-ए-इश्क़ में सब ज़ुल्फ़ ओ ख़त से डरते हैं
अख़ीर उम्र में इन ही में ध्यान लगता है
शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी
ग़ज़ल
नहीं डरते अगर हों लाख ज़िंदाँ यार ज़िंदाँ से
जुनून अब तो मिसाल-ए-नाला-ए-ज़ंजीर हम निकले