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ग़ज़ल
चले लाख चाल दुनिया हो ज़माना लाख दुश्मन
जो तिरी पनाह में हो उसे क्या किसी से डरना
पीर नसीरुद्दीन शाह नसीर
ग़ज़ल
अलीम मसरूर
ग़ज़ल
प्यार किया तो डरना क्या जब प्यार किया तो डरना क्या
प्यार किया कोई चोरी नहीं की छुप छुप आहें भरना क्या
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
गिरी हुई दीवारों में जकड़े से हुए दरवाज़ों की
ख़ाकिस्तर सी दहलीज़ों पर सर्द हवा ने डरना है
मुनीर नियाज़ी
ग़ज़ल
ख़ाक जीना है अगर मौत से डरना है यही
हवस-ए-ज़ीस्त हो इस दर्जा तो मरना है यही