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ग़ज़ल
तअस्सुब दरमियाँ से आप को वापस न ले आए
हरम की राह में निकला सनम-ख़ाना तो क्या होगा
सबा अकबराबादी
ग़ज़ल
तअ'स्सुब की फ़ज़ा में ता'ना-ए-किरदार क्या देता
मुनाफ़िक़ दोस्तों के हाथ में तलवार क्या देता
उनवान चिश्ती
ग़ज़ल
शिकवा हर दम ही तअ'स्सुब का न 'परवाना' करो
तुम हो क़ाबिल तो मिले कुछ भी न मंज़िल के सिवा
एजाज़ परवाना
ग़ज़ल
जो मोहब्बत के हैं अल्फ़ाज़ मिरे होंटों पर
वो तअ'स्सुब का तिरे चीर-हरन जानते हैं