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ग़ज़ल
मेरी ख़ातिर अब वो तकलीफ़-ए-तजल्ली क्यूँ करें
अपनी गर्द-ए-शौक़ में ख़ुद ही छुपा जाता हूँ मैं
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
तेरी निगाह-ए-नाज़ जो नावक-असर न हो
तकलीफ़-ए-चारा-साज़ी-ए-ज़ख़्म-ए-जिगर न हो
हकीम असद अली ख़ान मुज़्तर
ग़ज़ल
क्यूँके बे-बादा लब-ए-जू पे चमन में रहिए
अक्स-ए-गुल आब में तकलीफ़-ए-मय-ए-गुल-गूँ है
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
अपने दाता की हक़ीक़त के हैं जल्वा तुम में
लमआ-ए-नूर-ए-तजल्ली की क़सम या माबूद
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
ये आँखें मुद्दतों से ख़ूगर-ए-बर्क़-ए-तजल्ली हैं
नशेमन बिजलियों का है मिरा काशाना बरसों से
इक़बाल सुहैल
ग़ज़ल
हिजाब-अंदर-हिजाब अमवाज-ए-तूफ़ान-ए-तजल्ली हैं
फ़रोग़-ए-शम'अ से परवाना है आतिश-बजाँ फिर भी
सीमाब अकबराबादी
ग़ज़ल
तकलीफ़-ए-क़ैद-ए-ज़ुल्फ़ मिरे दिल से पूछिए
ख़ालिक़ कहीं फँसाए न मछली को जाल में