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ग़ज़ल
तकल्लुफ़ बरतरफ़ नज़्ज़ारगी में भी सही लेकिन
वो देखा जाए कब ये ज़ुल्म देखा जाए है मुझ से
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
दोस्ती कैसी वफ़ा कैसी तकल्लुफ़ बरतरफ़
आप कुछ भी हों मगर क्या दूसरा कुछ भी नहीं
बिलक़ीस ज़फ़ीरुल हसन
ग़ज़ल
तकल्लुफ़-बर-तरफ़ तुम कैसे मा'बूद-ए-मोहब्बत हो
कि इक दीवाना तुम से होश में लाया नहीं जाता
मख़मूर देहलवी
ग़ज़ल
तकल्लुफ़-बरतरफ़ फ़रहाद और इतनी सुबु-दस्ती
ख़याल आसाँ था लेकिन ख़्वाब-ए-ख़ुसरव ने गिरानी की
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
मिलूँ उस से तो मिलने की निशानी माँग लेता हूँ
तकल्लुफ़-बरतरफ़ प्यासा हूँ पानी माँग लेता हूँ
ज़फ़र इक़बाल
ग़ज़ल
जिसे हम तूल देते हैं तकल्लुफ़ बरतरफ़ हो कर
तअ'ल्लुक़ से बंधे अक्सर वो रिश्ते मार देते हैं
समीना गुल
ग़ज़ल
अब तकल्लुफ़ बरतरफ़ ये आप को मा'लूम है
क्यूँ मिरा ख़्वाब-ए-वफ़ा ता'बीर से महरूम है
उरूज ज़ैदी बदायूनी
ग़ज़ल
तकल्लुफ़ बरतरफ़ हम शौक़ की मस्ती से डरते हैं
यही है राहबर साक़ी यही है राहज़न साक़ी
एहसान दरबंगावी
ग़ज़ल
रहे उस शोख़ से आज़ुर्दा हम चंदे तकल्लुफ़ से
तकल्लुफ़ बरतरफ़ था एक अंदाज़-ए-जुनूँ वो भी
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
तकल्लुफ़ बरतरफ़ इस वक़्त जान-ए-आरज़ू बन कर
निगाहों में समा जाओ मिरे दिल में उतर जाओ
मिर्ज़ा ग़ुलाम अब्बास ज़ाहिर हैदरी
ग़ज़ल
तकल्लुफ़-बर-तरफ़ क्यूँ फूल ले कर आओ तुर्बत पर
मगर जब फ़ातिहा को हाथ उठाना मुस्कुरा देना
साइल देहलवी
ग़ज़ल
तकल्लुफ़-बर-तरफ़ रस्म-ए-मुरव्वत तह करो 'रिज़वी'
मोहब्बत आप होती है मोहब्बत की नहीं जाती
इज्तिबा रिज़वी
ग़ज़ल
सितम-कश मस्लहत से हूँ कि ख़ूबाँ तुझ पे आशिक़ हैं
तकल्लुफ़ बरतरफ़ मिल जाएगा तुझ सा रक़ीब आख़िर
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
रहा गर आस्ताँ पर आ के मैं फ़र्त-ए-अक़ीदत से
तकल्लुफ़ बरतरफ़ सरकार का क्या इस में नुक़साँ है
ज़का मीर औलाद मोहम्मद ख़ान
ग़ज़ल
तकल्लुफ़ बरतरफ़ रख कर जो तन्हाई में मिलते हैं
ख़ुदा जाने वो क्यूँ आख़िर सर-ए-महफ़िल नहीं मिलते