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ग़ज़ल
बदल गए हैं तक़ाज़े मिज़ाज-ए-वक़्त के साथ
न वो शराब, न साक़ी, न अब वो मय-ख़ाने
पीर नसीरुद्दीन शाह नसीर
ग़ज़ल
निगाहों के तक़ाज़े चैन से मरने नहीं देते
यहाँ मंज़र ही ऐसे हैं कि दिल भरने नहीं देते
वसीम बरेलवी
ग़ज़ल
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
जिस्म के कुछ बेचैन तक़ाज़े ज़ब्त से बाहर होते हैं
कब तक दिल को धोका दे कर यादों से बहलाओगे