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ग़ज़ल
अज्ञात
ग़ज़ल
जो हैं मज़लूम उन को तो तड़पता छोड़ देते हैं
ये कैसा शहर है ज़ालिम को ज़िंदा छोड़ देते हैं
अब्बास दाना
ग़ज़ल
समझता हूँ मैं सब कुछ सिर्फ़ समझाना नहीं आता
तड़पता हूँ मगर औरों को तड़पाना नहीं आता
अख़्तर अंसारी
ग़ज़ल
तड़पता हूँ कि इक साग़र किसी हातिम से मिल जाए
ज़वाल-ए-आसमाँ देखो कभी मय-ख़ाना मेरा था
अर्श सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
विसाल-ए-ग़ैर के क़िस्से को सुन कर क्या तड़पता हूँ
ये अरमाँ कोई जा सकता है हसरत आ ही जाती है
क़लक़ मेरठी
ग़ज़ल
किसी पहलू नहीं आराम आता तेरे आशिक़ को
दिल-ए-मुज़्तर तड़पता है निहायत बे-क़रारी है
भारतेंदु हरिश्चंद्र
ग़ज़ल
तरसती हैं ये आँखें देखने को दिल तड़पता है
ज़ियादा से ज़ियादा मुख़्तसर से मुख़्तसर देखो
सफ़ी औरंगाबादी
ग़ज़ल
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
दिल तड़पता है तो कुछ तस्कीन होती है 'जलील'
जी बहलने को ख़ुदा ने दर्द पैदा कर दिया