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ग़ज़ल
किसी के भूल जाने से मोहब्बत कम नहीं होती
मोहब्बत ग़म तो देती है शरीक-ए-ग़म नहीं होती
ग़म बिजनौरी
ग़ज़ल
ख़ारों से वास्ता हमें हैं ख़ार ही अज़ीज़
गुल ही तो हैं जो वाज़ेह हुए शक्ल-ए-ख़ार में
ग़म बिजनौरी
ग़ज़ल
मुक़द्दर को तिरे मंज़ूर कुछ 'ग़म' है तो ये ही है
कि तुझ सा इस ज़माने में कोई बे-दिल नहीं मिलता
ग़म बिजनौरी
ग़ज़ल
बताऊँ क्या शब-ए-फ़ुर्क़त मेरी कैसे सँवरती है
कभी तो हूक उठती है कभी रो रो गुज़रती है
ग़म बिजनौरी
ग़ज़ल
दिल का ख़ूँ तुम ने किया ख़ून का पानी ग़म ने
अब तप-ए-ग़म से वो पानी भी हवा होता है
सय्यद इक़बाल हैदर
ग़ज़ल
साक़िब लखनवी
ग़ज़ल
वो तप-ए-ग़म है कि सूखे हैं लब-ओ-काम-ओ-दहन
काश आ कर वो पिलाएँ दीद का पानी मुझे