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ग़ज़ल
जब जलते पतंगों को देखा 'दीदार' तो ये मालूम हुआ
आग़ाज़-ए-मोहब्बत ठीक तो है अंजाम-ए-मोहब्बत ठीक नहीं
दीदार बस्तवी
ग़ज़ल
साइल देहलवी
ग़ज़ल
दौलत-ए-दीदार हस्ब-ए-मुद्दआ हासिल हुई
मिल गई जिस शख़्स को तक़दीर से इक्सीर-ए-इश्क़
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
जुरअत-ए-अर्ज़-ए-तमन्ना मुझे क्यों कर हो 'कँवल'
ख़ातिर-ए-हुस्न पे हर बात गिराँ गुज़री है
कँवल एम ए
ग़ज़ल
मैं ने मंज़र ही नहीं देखे हैं पस-मंज़र भी
मुझ में अब जुरअत-ए-दीदार कहाँ से आई
सय्यदा शान-ए-मेराज
ग़ज़ल
नस्ब करें मेहराब-ए-तमन्ना दीदा ओ दिल को फ़र्श करें
सुनते हैं वो कू-ए-वफ़ा में आज करेंगे नुज़ूल मियाँ
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
बुझती नहीं है तिश्नगी दीदार-ए-यार की
नज़रों से उन के लाख पिलाने के बअ'द भी
अशहद बिलाल इब्न-ए-चमन
ग़ज़ल
सारे दिन करते हैं हम दश्त-ए-तमन्ना का सफ़र
गर्द चेहरे पे लिए शाम को घर आते हैं