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ग़ज़ल
है अब भी वक़्त ज़ाहिद तरमीम-ए-ज़ुह्द कर ले
सू-ए-हरम चला है अम्बोह-ए-बादा-ख्वाराँ
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
जोश मलीहाबादी
ग़ज़ल
तुम्हारा क़ौल क्यूँकर मो'तबर ठहरे कि तुम उस में
कभी तनसीख़ करते हो कभी तरमीम करते हो
महबूब राही
ग़ज़ल
इस गुफ़्तुगू की तर्ज़ में तरमीम कीजिए
कब तक मैं ख़ामोशी से सुनूँ आप की नहीं