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ग़ज़ल
मर गई सर्व पे जब हो के तसद्दुक़ क़ुमरी
उस से उस दम भी न तौक़ अपने गुलू का निकला
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
बड़ा प्यारा है वो ग़म जिस को तेरे चाहने वाले
ज़माने-भर की ख़ुशियों के तसद्दुक़ माँग लाए हैं
किश्वर नाहीद
ग़ज़ल
थी सियाहियों का मस्कन मिरी ज़िंदगी की वादी
तिरे हुस्न के तसद्दुक़ मुझे रौशनी दिखा दी
आमिर उस्मानी
ग़ज़ल
जिस पे बुत-ख़ाना तसद्दुक़ जिस पे काबा भी निसार
एक सूरत ऐसी भी सुनते हैं बुत-ख़ाने में है
असग़र गोंडवी
ग़ज़ल
सबा तसद्दुक़ तिरे नफ़स पर चमन तिरे पैरहन पे क़ुर्बां
नसीम-ए-दोशीज़गी में कैसा बसा हुआ है शबाब तेरा
जोश मलीहाबादी
ग़ज़ल
जो ग़म तुम ने दिया उस पर तसद्दुक़ सैकड़ों ख़ुशियाँ
जो दुख तुम से मिले उन के मुक़ाबिल में तरब क्या है
मुज़्तर ख़ैराबादी
ग़ज़ल
तसद्दुक़ इस्मत-ए-कौनैन उस मज्ज़ूब-ए-उल्फ़त पर
जो उन का ग़म छुपाए और ख़ुद बद-नाम हो जाए
शेरी भोपाली
ग़ज़ल
इक हम हैं कि हैं नाम-ए-मुबारक पे तसद्दुक़
तुम को तो कभी देख के उल्फ़त नहीं आती
वाजिद अली शाह अख़्तर
ग़ज़ल
तेरी नज़रों पे तसद्दुक़ आज अहल-ए-होश हैं
जान-ए-जाँ तेरी निगाहें मय-कदा-बर-दोश हैं