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ग़ज़ल
हिज्र के दरिया में तुम पढ़ना लहरों की तहरीरें भी
पानी की हर सत्र पे मैं कुछ दिल की बातें लिक्खूंगा
अमजद इस्लाम अमजद
ग़ज़ल
अपनी अपनी जगह पर दोनों बे-बस भी मसरूर भी हैं
तुम तहरीर-ए-संग हुए हम भूला हुआ इक़रार हुए
बशर नवाज़
ग़ज़ल
हमारी तहरीरें वारदातें बहुत ज़माने के बाद होंगी
रवाँ ये बे-हिस उदास नहरें हमारे जाने के बाद होंगी
मुसव्विर सब्ज़वारी
ग़ज़ल
न तहरीर-ए-ख़त है न बैत अब्रवीं हैं
ये मज़मूँ हमारा वो फ़िक़रा तुम्हारा