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ग़ज़ल
ग़म से मरता हूँ कि इतना नहीं दुनिया में कोई
कि करे ताज़ियत-ए-मेहर-ओ-वफ़ा मेरे बा'द
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
तड़प कर मर गया वो सैद-ए-बाल-अफ़्शाँ कि मुज़्तर था
हुआ नासूर-ए-चश्म-ए-ताज़ियत चश्म-ए-ख़दंग आख़िर
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
फ़रहत एहसास
ग़ज़ल
ताज़ियत करनी है ख़ुद से दिल-ए-मरहूम मुझे
ता'ज़िया-ख़ाने में ये फ़र्श-ए-अज़ा रहने दे
तसनीम आबिदी
ग़ज़ल
अभी कमसिन हैं रस्म-ए-ताज़ियत आती नहीं उन को
ये क्या कम है मिरे फूलों में बैठे मुस्कुराते हैं