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ग़ज़ल
आली शेर हो या अफ़्साना या चाहत का ताना बाना
लुत्फ़ अधूरा रह जाता है पूरी बात बता देने से
जलील ’आली’
ग़ज़ल
अभी मरते हैं हम जीने का ता'ना फिर न देना तुम
ये ता'ना उन को देना जिन से ऐसा हो नहीं सकता
मुज़्तर ख़ैराबादी
ग़ज़ल
हर वक़्त है दुश्नाम हर इक बात में ताना
फिर उस पे भी कहता है कि मैं कुछ नहीं कहता
मोमिन ख़ाँ मोमिन
ग़ज़ल
काबे में जा रहा तो न दो ता'ना क्या कहें
भूला हूँ हक़्क़-ए-सोहबत-ए-अहल-ए-कुनिश्त को
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
हुस्न और 'इश्क़ को दे ताना-ए-बेदाद 'मजाज़'
तुम को तो सिर्फ़ इसी बात पे मर जाना था
असरार-उल-हक़ मजाज़
ग़ज़ल
नाकामी की सूरत में मिले ताना-ए-ना-याफ़्त
अब काम मिरे इतने भी कच्चे नहीं होते