आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "तामीर-ए-ख़ुदी"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "तामीर-ए-ख़ुदी"
ग़ज़ल
ख़ुदा का दोस्त है तामीर-ए-दिल जो शख़्स करता हो
ख़लीलुल्लाह भी काबा का इक मेमार था क्या था
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
बशर को देखिए दा'वा है तस्ख़ीर-ए-दो-आलम का
ख़ुदा जाने ये क्या कर दे अगर मुख़्तार हो जाए
कँवल एम ए
ग़ज़ल
बद्र-ए-आलम ख़लिश
ग़ज़ल
जो तिरी महफ़िल से ज़ौक़-ए-ख़ाम ले कर आए हैं
अपने सर वो ख़ुद ही इक इल्ज़ाम ले कर आए हैं
सय्यदा शान-ए-मेराज
ग़ज़ल
चली ख़िरद की न कुछ आगही ने साथ दिया
रह-ए-जुनूँ में फ़क़त बे-ख़ुदी ने साथ दिया
सय्यदा शान-ए-मेराज
ग़ज़ल
मिरी बस्ती का कोई घर भी घर जैसा नहीं लगता
कहीं तामीर-ए-बाम-ओ-दर में कोई नक़्स रहता है
अज़हर नक़वी
ग़ज़ल
मेरे ही संग-ओ-ख़िश्त से तामीर-ए-बाम-ओ-दर
मेरे ही घर को शहर में शामिल कहा न जाए
मजरूह सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
खुला ये दिल पे कि तामीर-ए-बाम-ओ-दर है फ़रेब
बगूले क़ालिब-ए-दीवार-ओ-दर में होते हैं
अज़ीज़ हामिद मदनी
ग़ज़ल
हो अगर सर-गश्तगी में फ़िक्र-ए-तामीर-ए-मकाँ
ख़ाक उड़ा लाए बगूला घर बनाने के लिए
ख़्वाज़ा मोहम्मद वज़ीर
ग़ज़ल
था अज़ल ही से हमें ख़ौफ़-ए-चराग़-ए-ख़ाना
गो कि मुश्किल न थी ता'मीर-ए-दर-ओ-बाम बहुत