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ग़ज़ल
इसी उम्मीद पर हम तालिबान-ए-दर्द जीते हैं
ख़ोशा दर्द दे कि तेरा और दर्द-ए-ला-दवा होगा
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
देखना ऐ 'दर्द' हो जाएँगे दिल कितने असीर
ज़ुल्फ़-ए-पेचाँ आज वो खोले हुए महफ़िल में है
दर्द सिरोंजी
ग़ज़ल
ग़म जुदाई का शब-ए-फ़ुर्क़त में दिल पर हमनशीं
दर्द बन कर छाएगा मैं ने कभी सोचा न था
दर्द सिरोंजी
ग़ज़ल
वो अब हमारे पहलू में बैठे हुए हैं 'दर्द'
डर ये है मर न जाएँ कहीं इस ख़ुशी से हम
नरेश कुमार दर्द
ग़ज़ल
जनाब-ए-दर्द से पूछो कि लुत्फ़-ए-दिल-लगी क्या है
जो दिल रखते नहीं दिल की लगी का राज़ क्या जानें
जगदीश मेहता दर्द
ग़ज़ल
इक ज़रा सी और फ़ुर्सत ऐ फ़रेब-ए-दर्द-ए-दिल
गुलशन-ए-हस्ती में गुल बन कर महकना है मुझे
जगदीश मेहता दर्द
ग़ज़ल
मस्त-ए-शराब-ए-इश्क़ वो बे-ख़ुद है जिस को हश्र
ऐ 'दर्द' चाहे लाए ब-ख़ुद पर न ला सके
ख़्वाजा मीर दर्द
ग़ज़ल
दिल का हर दर्द था सर्माया-ए-हस्ती लेकिन
'फ़ैज़' ने अपनी ही उल्फ़त का गला घोंट दिया