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ग़ज़ल
फ़ना तालीम-ए-दर्स-ए-बे-ख़ुदी हूँ उस ज़माने से
कि मजनूँ लाम अलिफ़ लिखता था दीवार-ए-दबिस्ताँ पर
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
जुनून-ए-बे-ख़ुदी के साज़-ओ-सामाँ देखने वाले
बड़ी हैरत में हैं मेरा गरेबाँ देखने वाले
नख़्शब जार्चवि
ग़ज़ल
फ़राज़-ए-बे-ख़ुदी से तेरा तिश्ना-लब नहीं उतरा
अभी तक उस की आँखों से ख़ुमार-ए-शब नहीं उतरा
क़तील शिफ़ाई
ग़ज़ल
हुजूम-ए-बे-खु़दी में ग़म की तस्वीरें नज़र आईं
मुझे शीशे में जब रिंदों की तक़दीरें नज़र आईं
मसूद मैकश मुरादाबादी
ग़ज़ल
फ़ुर्सत-ए-आगही भी दी लज़्ज़त-ए-बे-ख़ुदी भी दी
मौत के साथ साथ ही आप ने आगही भी दी
माहिर-उल क़ादरी
ग़ज़ल
'कँवल' मय-ख़्वार क्या जाने सुरूर-ए-बे-ख़ुदी क्या है
उसी से पूछिए जो बे-पिए सरशार हो जाए
कँवल एम ए
ग़ज़ल
चली ख़िरद की न कुछ आगही ने साथ दिया
रह-ए-जुनूँ में फ़क़त बे-ख़ुदी ने साथ दिया
सय्यदा शान-ए-मेराज
ग़ज़ल
बे-ख़ुदी अच्छी थी अब तो आगही की शक्ल में
ग़म ही ग़म ना-वाक़िफ़-ए-अंजाम ले कर आए हैं