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ग़ज़ल
हमारे मुल्कों में ता'लीम फिर है ज़ेर-ए-सितम
सितमगरों से बचाएगी दरस-गाह कोई
सय्यद इक़बाल रिज़वी शारिब
ग़ज़ल
तू जानता नहीं कि वो वक़्त-ए-ज़वाल था
आँखों का रंग कर्ब से जिस वक़्त लाल था
मोहम्मद मुस्तहसन जामी
ग़ज़ल
हम गदाओं को है तस्लीम-ओ-रज़ा से सरोकार
मुल्तजी हैं न ज़े-मुनइ'म ने ज़े-शाहे गाहे
वलीउल्लाह मुहिब
ग़ज़ल
दिखाती है मिरी तहरीर ए'जाज़-ए-रक़म मेरा
ज़बान-ए-बे-ज़बाँ बन बन के चलता है क़लम मेरा
सय्यद मसूद हसन मसूद
ग़ज़ल
फ़िक्र-ए-बेश-ओ-कम नहीं उन की रज़ा के सामने
ये मुझे तस्लीम है अर्ज़-ओ-समा के सामने
उरूज ज़ैदी बदायूनी
ग़ज़ल
ख़ौफ़-ज़दा लोगों से रस्म-ओ-राह बढ़ाते फिरते हैं
हम बे-ख़्वाबी के मौसम में ख़्वाब दिखाते फिरते हैं
मोहसिन असरार
ग़ज़ल
तुम को वापस बुलाती पुकारों के दुख तुम नहीं जानते
पाँव पड़ते हुए चुप के मारों के दुख तुम नहीं जानते