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ग़ज़ल
ये खुलेगा मुझ पे आख़िर मेरी मंज़िल है कहाँ
जब जुनूँ 'तासीर' मुझ को दर-ब-दर ले जाएगा
शर्मा तासीर
ग़ज़ल
लुत्फ़-ए-वफ़ा नहीं कि वो बेदाद-गर नहीं
ख़ामोश हूँ कि मेरी फ़ुग़ाँ बे-असर नहीं
मोहम्मद दीन तासीर
ग़ज़ल
आगही सर-चश्मा-ए-रंज-ओ-अलम 'तासीर' है
हम ख़ुशी से ही नहीं वाक़िफ़ तो फिर क्या ग़म करें
मोहम्मद दीन तासीर
ग़ज़ल
राह-ए-वफ़ा में हम ने 'वफ़ा' जब अपना सब कुछ वार दिया
तब जा कर इस दश्त-ए-जुनूँ में आए हैं समझाने लोग