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ग़ज़ल
कशीद करते हैं इरफ़ान अपने हिज्र से 'तूर'
ये ख़ित्ता छोड़ के सारा जहाँ विसाल का है
कृष्ण कुमार तूर
ग़ज़ल
जो देखो ग़ौर से कुछ कम नहीं है ये भी 'तूर'
इक इज़्तिरार सुकून-ए-हवा में रक्खा है
कृष्ण कुमार तूर
ग़ज़ल
जब भी 'तूर' उसे ढूँडने को गहरे बनों में जाता हूँ
इक आवाज़ ये कहती है मुझ से मूरख घर को वापस जा
कृष्ण कुमार तूर
ग़ज़ल
बंद क्यूँ अश्क न हों तब्-ए-रवाँ से ऐ 'तूर'
वो भी तो सूरत-ए-अफ़्लाक नहीं खुलता कुछ
कृष्ण कुमार तूर
ग़ज़ल
बस अब ये होगा कि तुम पर ही आँच आएगी 'तूर'
भड़क उठा है वो दिल का शुमारा देखते ही
कृष्ण कुमार तूर
ग़ज़ल
एक ये दिन हैं फ़लक-आसार है 'तूर' अब ज़मीं
एक वो दिन थे कि ये शम्स-ओ-क़मर आबाद थे
कृष्ण कुमार तूर
ग़ज़ल
है तेरे शेरों में कुछ ऐसी ख़ुश-गुमानी 'तूर'
बयान-ए-हुस्न है हुस्न-ए-बयाँ अजीब सा कुछ