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ग़ज़ल
खिंचा जो तूल-ए-शब-ए-जुदाई अँधेरी मदफ़न की याद आई
निगाह ओ दिल पर वो यास छाई उमीद जाती रही सहर की
आग़ा हज्जू शरफ़
ग़ज़ल
हमारे दरमियाँ अहद-ए-शब-ए-महताब ज़िंदा है
हवा चुपके से कहती है अभी इक ख़्वाब ज़िंदा है